कोरोना : संभावनाएँ-सीमाएँ

कोरोना : संभावनाएँ-सीमाएँ बिना प्राकृतिक संपदा के भौतिक जगत के लाभ हानि के संकीर्ण कानून से वैश्विक साम्राज्य स्थापित करने वाले देशों के विरुद्ध यह जैविक जंग ही 'कोरोना' वायरस है। हवा, पानी, अग्नि, आकाश और मिट्टी से मनुष्य भी है प्रकृति भी है और सम्पूर्ण जगत के अंडज, पिंडज, उद्भिज, चराचर जीव भी। इन सबको अपना स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है और यह अधिकार उन्हें तभी मिलेगा जब पंच महाभूतों को विषाक्त न किया जाय। अत्याधुनिक अस्त्र शस्त्रों से देशों की भौतिक सम्पदा की लूट यूएनओ के मार्फत करनेवाले अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के विरुद्ध प्रायोजित जैविक बम कोरोना वायरस का निर्माण प्रसार और नियंत्रण चीन की सरकार ने बुहान शहर में शुरू किया और अब जब विश्व के अधिकांश देश स्वयं 'लाकडाउन' के कारण वैश्विक मंदी के गिरफ्त में है तो आर्थिक जंग में चीन कोरोनामुक्त होकर उत्पादन आपूर्ति से, सस्ते शेयर कंपनियों के खरीद कर विश्व को मात दे दिया है। आणविक युद्ध के बाद ऐसे ही अगर जैविक युद्ध होते रहे तो मानव अपने विकास का विनाश स्वयं कर लेगा। और तब ये वायरस असहाय, निरीह, निबल जीव जंतुओं के सहायक साबित होंगे। जिन रसायनों, कीटाणुओं, रासायनिक खादों के उपयोग से अधिक उत्पादन के लोभ में जीवाणुओं का नाश किया और उर्वर मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों से अनुर्वर और बंजर बना दिया अब वही मानव स्वेच्छा से स्वयं को रसायनों से सेनेटाइज कर, स्नान कर घर में प्रवेश कर रहा है, मरने के बाद वैसे ही मिट्टी में दफन हो रहा है जैसे उसने पशु पक्षियों की हिंसा कर अपने पेट रूपी कब्र में भोजन बतौर दफन किया।


यही है जैसी करनी वैसा फल गीता का ज्ञान । भारतीय मनीषाओं बुद्ध, महावीर, गाँधीजी आदि की जीव हिंसा न करने का बोध, का आचरण न करने का अंजाम है कोरोना। कोरोना का संदेश है जीव हिंसा बंद करो, शराब बीड़ी, सिगरेट, गुटका आदि नशा बंद करो। पर्यावरण प्रदूषण हवा, पानी, आकाश, मिट्टी, अग्नि तत्व में करना बंद करो, वृक्षों और जंगलों का कटान तथा वन्य जीवों का संहार, मांस उत्पादन इसका आयात-निर्यात बंद करो, प्रदूषणकारी मिलों को पूर्णतः बंद करो। करुणा, दया, सत्य, तप, त्याग का, अस्तेय और अपरिग्रह का, अंतर्बाह्य सफाई, क्षमावान बनने का, इन्द्रिय लोलुप तथा क्रोधमुक्त हो ईश्वरीय जगत की रक्षा और संवर्द्धन करने का आचरण ही कोरोना से पूर्णतया मुक्ति दिला सकेगा, अन्यथा कई कोरोना भिन्नभिन्न स्वरूपों में कई देशों से उत्पन्न होते रहेंगे और गंदी काया को धरती में, कब्र में सुलाया जाता रहेगा। राष्ट्रभक्ति मानव मात्र की रक्षा नहीं बल्कि राष्ट्र की हर सम्पदा की सुरक्षा है, जैविक सम्पदा का जरूरत के अनुसार उत्खनन हो, न कि व्यापारिक लाभ और विदेशी बैंकें में धन जमा करने के लिये स्वेच्छाचारी कानून और उसका पालन कराया जाय। कोरोना ने पूर्णतः आयात निर्यात प्रतिबंधित कर दिया है, सामानों को ही नहीं, मानवों का भी, प्रवासी भारतीयों का भी और विदेशी पर्यटकों का भी। स्पष्ट संदेश है जिस देश में जो है, वह देश वहीं के सामानों का उपभोग करें। स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण, शोध, और उपभोग हो। भाषा भी स्वदेशी हो और भूषा भी स्वदेशी हो, खानपान स्वदेशी हो और शिक्षा भी अपनी भाषा और अपनी तकनीकी में हो। भिन्न-भिन्न जल और वायु के अनुसार जब प्रकृति भी भिन्न-भिन्न है, सभ्यता भिन्न-भिन्न है तो क्यों वैश्वीकरण से आम जनता का शोषण दमन की खुली छूट कानून बनाकर किया जाय ? क्यों विदेशी कर्ज ली जाये ? जब जनता घर में रहकर जरूरत की चीजों में ही संतोष करने को तैयार है तो क्यों हम सत्तर गुना रु. एक डालर के बदले भरकर आजीवन नागरिकों का जीवन बंधक और कर्जदार बनाये। देश की सम्पत्ति का निर्यात करने को अगर कानूनी अपराध बना दिया जाये तो हम दंगा और आतंकवाद से भी बचेंगे और जैविक और आणविक युद्ध से भी। भारतीय प्रतिभाओं का पलायन रुकेगा और सरकार को अपनी शिक्षा नीति में भारतीय जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार कर प्रशिक्षण मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी में करना चाहिये। चीन अगर शत्रु देश है तो क्यों हमारी सरकार ६०० करोड़ रु. के निर्यात के बदले पांच गुना तीन लाख ६० हजार करोड़ का आयात निर्यात करती है। क्यों नहीं वैश्वीकरण की संधि को तोड़ती है। क्यों इस संधि के तहत आयात कर में ढील और स्वदेशी उत्पाद कर में हर साल बढ़ोत्तरी करती, भारतीय उद्योगों रोजगारों को चौपट करती जा रही है ? क्यों अपने तंत्र का असहनीय वेतन, पेंशन बोझ आम जनता पर डाल रही है। क्यों स्वयं लगभग ५ हजार विधायकों, सांसदों का १२०० करोड़ वार्षिक वेतन और ऐसे ही पालिका, निगम और ग्राम पंचायतों के अध्यक्षों, सदस्यों पर इससे अधिक वेतन, पेशन पर व्यय कर रही हैं। अगर देश के हर नागरिक की तरह देश का तीन करोड़ सरकारी तंत्र और सरकार जीवन जीने का संकल्प व्यावहारिक जीवन में जीकर आदर्श पेश करें तो देश की हर जनता सरकार और तंत्र को अपना माने, हर स्तर पर साथ दे, पर जन प्रतिनिधि विशेषाधिकार कानून ही देश की संज्ञा, जन प्रतिनिधि और सरकारी तंत्र से देश की जनता को पृथक करता है। कोरोना परिवार नामक भारतीय संस्था को नहीं प्रभावित कर रहा है।


पति पत्नी का, माँ बेटे का, बहू-सास का, भाई-बहन का पिता-बाबा-दादा का परस्पर और हर अंतरंग सम्बन्ध के बाद भी कोई कोरोना संक्रमण नहीं, पर देश का पारदेशों से सम्बन्ध, राज्य और जिलेवासियों का देश के अन्य राज्यों एवं अन्य जिलों का सम्बन्ध ही कोरोना के बढ़ने, पलने फैलने का कारण है संसार देख रहा है। क्या सरकार इस वायरस को संदेश और सबक को अपनी नीतियों में स्थान देकर अनुपालन करायेगी ? अगर देश के हर गाँव आत्मनिर्भर कोरोना टाइम की तरह हों, हर जिले आत्मनिर्भर और हर राज्य आत्मनिर्भर स्वदेशी और स्वभाषा भूषा में अपनी सभ्यता, संस्कृति का अनुगमन करें तो भास्कर भरत के भारत में हर व्यक्ति शूरवीर स्वात्मनिर्भर और महिलाएँ भारती हों। महिलाएँ ग्रामीण सैनिक, क्षेत्रीय और राजकीय सैनिक बनें, क्योंकि तब वे कोरोना से मुक्त होगी, परिवार कवच में रहेंगी और गैर जिला गैर राज्य, गैर देश की सभ्यता से भी सुरक्षित रहेंगी। अंतर्बाह्य स्वच्छता की, पारिवारिक आत्मनिर्भरता और स्वस्थता की तथा वीर वंशजों की वही बुनियाद हैं। जब भारत का परिवार बाजार आश्रित हो जायेगा तो परदेशी सभ्यता, संस्कृति, भाषा, भूषा, खानपान, रहन सहन, शिक्षा और वैश्विक अपसंस्कृति देश के घरों में कई जानलेवा रोगाणु के रूप में देश को संक्रमित करेंगे। ऐसे वक्त में एक कौम विशेष का ८००० की संख्या में दिल्ली में तबलीगी जमात में इकट्ठा होना और कोरोना को जान बूझकर पूरे देश में फैलाना पूरे देश की जनता की निगाह में अघोषित अपराधी होना है। ऐसे अमिट दाग जब उनके दामन में लगेंगे तो उनकी निर्दोष भावी पीढ़ी सामाजिक अस्पृश्यता का समाजिक निर्वासन का दंड भुगतेगी। हमारी सरकार के लिये यही अवसर है वैश्विक दबाव से मुक्त होने का, वैश्विक बाजार से कटकर स्वदेशीऔर स्वावलम्बी हर नागरिकों को बनाने का, मांस, मदिरा, नशा उत्पादन के उन्मूलन का, प्रभूत संख्या में गोवंश और कृषक वंश को पोषण एवं संवर्द्धन करने का, क्षेत्रीय भाषा को राजभाषा घोषित कर उनमें बच्चों को शिक्षा क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार निर्मित पाठ्यक्रम से देने का, राष्ट्रभाषा हिन्दी में सब कुछ करने का, जिससे हिन्दी विरोधी सारे देश प्रदेश भारत की हर गति विधियों से, राज्यों की हर गतिविधियों से अनजान रहे। ५००० वर्षों से ज्ञान से जुड़ने का भी यही समय है संस्कृत अध्ययन अध्यापन के माध्यम से करने का। टैक्सेशन प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। उत्पादनकर, व्यापार कर, बिक्री और प्रवेश कर, आयकर आदि ४० करों की अति वृद्धि नागरिकों को कर चोरी को प्रेरित करती है और व्यापार वृद्धि को रोकती है। इसलिये पहले स्वावलम्बन, फिर कर निर्धारण हो। इस तरह कोरोना ने कई सीमाएँ दी हैं तो कई संभावनाओं के अवसर भी दिये हैं। हमारी सरकार और उसका तंत्र पहले स्वावलम्बी हो वरना जब वे कोरोनाग्रस्त होंगे तो उनसे देश भी संक्रमित होगा। सत्ता तंत्र की सफाई जरूरी है। सत्य, निष्ठा एवं ईमानदारी पूर्वक सतत् विधेयात्मक