कारण-निवारण बीमारी एवं मौत के कारण है वीआईपी फूड और इसका निवारण है 'डीआईपी' फूड। वीआईपी में परसन वे लोग होते हैं जो किसी ट्रैफिक अथवा अपने बनाये नियमों का स्वयं पालन नहीं करते, और दूसरों को उन नियमों का पालन करने को बाध्य करते हैं, सिस्टम को, बड़ी व्यवस्था को इसके लिये तैनात करते प्रयोग हैं। इसके विपरीत डीआईपी परसन वे लोग होते हैं जो सारे मुख्य नियमों का पालन करते हैं। वीआईपी का पूरा नाम है वेरी इम्पौटेन्ट परसन और डीआईपी का डिसिप्लीन इम्पौटेन्ट परसन। ठीक इसी तरह इनके अलग-अलग भोजन होते हैं वीआईपी फुड और डीआईपी फुड। वीआईपी फुड समाज में सम्मानित भोजन है, पर शरीर जिस को यह गंभीर बीमारियाँ और मौत देता है। डीआईपी फुड खाने से रोग क्योर होता है, आजीवन स्वास्थ्य देता में है तथा असामयिक, अकाल मौत नहीं होती है। अब तीन आपको जिज्ञासा होगी कौन भोजन रोग देता है और एक कौन भोजन नीरोग करता और नीरोग रखता है। रोग इकट्ठा देने वाले मुख्यतः भोजन हैं कंपनियों के सारे पैक्ड फूड,जैसे रस्क, बिस्कुट, बंद, ब्रेड, बाजार का बना इसलिये भोजन पैकिंग में आदि। रीफाइंड तेल से बने घर या बाजार के सारे भोजन, डेयरी और एनिमल्स फुड। डेयरी के दूध से लेकर दूध से बने सारे पैक्ड उत्पाद, डिजीज किसी भी जानवर का मांस अंडा, मछली आदि। बाजार पायी में न्यूट्रीशंस के रूप में बिकने वाली सारी दवाइयाँ या फुड सप्लीमेंट, टानिक, च्यवनप्राश, वार्नवीटा आदि, चाय, काफी, बाजारू ड्रिकिंग वाटर, ठंडा के नाम पर बिकनेवाले कोका कोला, पेप्सी, माजा, देशी विदेशी शराब अथवा कोई भी मादक पदार्थ गुटका, गांजा, भांग क्लिंटन आदि-आदि। इन सारी चीजों को खाना पीना घर में, में समाज में, शादी ब्याह या अन्य किसी प्रकार के चिकित्सक आयोजनों, समारोहों में खिलाना पिलाना सम्मान समझा जाता है, पर है यह रोगों और मौत का आमंत्रण। आप पूछ सकते हैं फिर ये सामान बाजार में क्यों बिकते और पूर्ण लोग क्यों खरीदते हैं ? इसका उत्तर है टीवी चैनलों, समाचार पत्रों में विज्ञापन और सस्ता, छूट तथा सरकार गयाको टैक्स, मुनाफा, चिकित्सकों की गलत सलाह क्योंकि वे ही कंपनियों के विज्ञापन की मुख्य कड़ी हैं। वे गलत को गलत नहीं बताते और बीमार को भी खाने की ठीक गलत सलाह, प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं। बदले में कंपनियाँ उन्हें अनेक पैकेज मुफ्त, सिम्पल दवाइयाँ, टूर आदि गिफ्ट देती हैं और बढ़ते बीमारों और बीमारियों से उनका आर्थिक लाभ एवं समाज में धन से, सम्मान भी बढ़ता है तथा वे रोगों के मौत के जिम्मेदार भी नहीं बनते। डाक्टरी चिकित्सा के दौरान हुई मौतों की अलग जिनका जुडिशियरी होनी चाहिये। बाजार में स्वास्थ्य के लिये हानिकारक पदार्थों की भारत में बिक्री विश्व व्यापार संधि निकोबार का हिस्सा है जिसे भारत सरकार एवं राज्य सरकारें सहस्ताक्षरित अनुमति देती हैं और हम हमारी सरकार के गलत संधि के कारण रोगों से आकस्मिक मौत एवं हर गलत दवाओं और बाजारू गलत भोजन के कारण मर रहे हैं। ये बात हम नहीं वैज्ञानिक अनुसंधानों की रिपोर्ट रिपोर्ट और इन रिपोर्टों की छपी जर्नल्स, शोध पत्र पत्रिकाएँ कह रही हैं। कोरोना वायरस के कारण हुई मौतों का आँकड़ा पूरे विश्व के देशों में रोज जिले प्रदेश और हर देश स्तर पर पहली बार दिये जा रहे हैं, इसका मुख्य कारण है कोरोना वायरस की दवाओं की खोज, बिक्री और सुरक्षा सप्लीमेंट, जाँच किट आदि की बिक्री वैश्विक हैंस्तर पर सबसे पहले शुरू करना और मुनाफा कमाना। जाहिर है कोरोना वायरस के कारण हुए लाकडाउन वीआईपी पीरियड में सभी देशों मे मृत्यु दर ५० प्रतिशत कम हुई है। जब लाकडाउन नहीं था तो सारे अस्पताल और दवाइयों की दुकानें खुली होती थीं और लाकडाउन के सापेक्ष मृत्यु दर दोगुनी थी। स्पष्ट है रोगी की अंग्रेजी डिज दवाओं और एलोपैथ चिकित्सकों की चिकित्सा से अधिक मौतें हो रही हैं। वर्तमान में कोरोना वायरस से जो मौतों वायरस की संख्या दिखायी जा रही हैं उसमें अनेक बीमारों की मौत के कारण अलग-अलग है। किडनी, हार्ट, लीवर, फेफड़ा, कैंसर, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, वृद्ध होना आदि। कई और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होनेका प्रमुख कारण इनमें एक रासायनिक अंग्रेजी ।
निवारण दवाओं का अधिक प्रयोग और उपयोग। जाहिर है विश्व में अभी तक कोई देश ने कोरोना की न तो दवाई बनायी है और न ही एक वर्ष तक कोई दवा बनायी जा सकती है। अनुसंधान रोगियों पर हो रहे हैं और भारत में केवल सरकारी एलोपैथ डाक्टर, आईएमआरसी जैसी संस्थाएँ प्रयोग कर रही हैं। इस लंबी अवधि के अनुसंधान के समय और इस दौरान लाकडाउन से हो रही देश के साथ वैश्विक आर्थिक मंदी, घाटा, बेरोजगारी से हर सरकारें अब बाजार खोल रही हैं और प्रभावित क्षेत्र को रेड, एलो जोन करार कर बंद बनाये रखी हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल २००० की रिपोर्ट कहती है कि जब जब जिस देश के डाक्टरों ने हड़ताल की तब-तब रोगियों के मरने की संख्या कम हुई, मृत्यु दर घटी। कैलिफोर्निया में हर वर्ष मार्च महीने में विश्व के हार्ट के डाक्टरों की तीन दिन की मीटिंग होती है आने जानेका समय कुल एक हफ्ता लगता है और २५ हजार डाक्टर लगभग वहाँ इकट्ठा होते हैं। सवाल आया जब अस्पतालों में हार्ट के डाक्टर नहीं होते हैं तो हार्ट के पेशेंट मर जाते होंगे, इसलिये ये मीटिंग बंद कर देनी चाहिये, २००१ से २०११ तक के उन अस्पतालों में, उस अवधि में हार्ट अटैक आदि से मरने वालों की रिपोर्ट देखी गयी तो हार्ट डिजीज से मरने वालों की संख्या में ८ प्रतिशत की कमी पायी गयी। विश्व में १० में तीन डायबिटीज के रोगी हैं और केवल तीन कंपनियाँ इंसुलिन बनाती हैं। इंसुलिन की उपलब्धता में डायबिटिक रोगियों की मृत्यु दर सात प्रतिशत है और जहाँ इंसुलिन अनुपलब्ध है वहाँ मृत्यु दर इससे तीन प्रतिशत है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कई आपरेशन २००४ में २००५ में, २०१० में हुए और वे मरने के करीब पहुँच गये। उनके चिकित्सक टी कौलिज कैंपवेल और डा. कोलवेजस्टिन ने अंग्रेजी दवाओं को बंद करा दिये, फल, सब्जी, फुड पर उन्हें रखे और २०१० से २०१७ तक वे बीमार नहीं हुए पूर्ण स्वस्थ हैं, उनकी स्टेटमेंट गवाही मौजूद है। एप्पल कंपनी के मालिक नाम स्टिपजूस को १६७६ में कैंसर हो गया। वे भारत आये और वे पैक्ड कंपनी फूड, मांसाहार एनिमल प्रोटीन लेना बंद कर फल, सब्जी पर रहने लगे, वे ठीक हो गये। उनकी पत्नी ने अमेरिका वापसी पर ठीक होने का राज पूछा, उन्होंने सच्चाई बता दी। पत्नी ने मित्रों को फोन किया, मित्रों ने उन्हें अस्पताल ले गये, एलोपैथ दवाएँ देना शुरू किये, जांचें की, और वे मर गये। एक नहीं कई वैज्ञानिक शोध रिपोर्ट हैं, जो इस बातों की पुष्टि करती हैं उनमें एक चिकित्सक हैं डा. विश्वरूप राय चौधरी, जो इन्डो वियतनाम बोर्ड के प्रेसीडेन्ट हैं, जिनका वर्ल्ड गिनीज बुक रिकार्ड में १ मिनट में १६० बार पुश अप करनेका नाम दर्ज है। उन्होंने अंडमान निकोबार के जारावास में जहाँ ५० हजार वर्ष पुराने आदिमानव आज भी हैं, जहाँ पुलिस प्रोटेक्शन के बिना जाना आज भी मना है क्योंकि वे अनजान हैं वर्तमान के हर विकास से और वे तीर से दूर से ही अज्ञात को मार डालते हैं। उनके डा. आर.सी. गर्ग से मिलकर जो रिपोर्ट उन्होंने बनायी और निष्कर्ष दिया वह हर भारतीय के लिये जीवन में अपनाने योग्य है।
कुवैत सबसे अमीर देश है जहाँ की सरकार अपने प्रत्येक नागरिकों के खाते में प्रति वर्ष २५ लाख रु. डाल देती है, वहाँ के लोग पैसे के लिये काम नहीं करते। वहाँ सबसे ज्यादा २० प्रतिशत डायबिटिक लोग हैं। इन शोधों के बाद ही विश्व रूप राय चौधरी ने बीमारियों से पूर्ण मुक्ति और स्वस्थ जीवन के लिये वीआईपी और डीआईपी फुड को वर्गीकृत किया और इससे सारे असाध्य रोगों, मधुमेह, कैंसर, अस्थमा, हाई लो ब्लड प्रेशर, इंटेस्टाइनल डिजआर्डर, थायरायेड, अर्थराइटिस, किडनी डिस्ट्रक्शन, ओबेसिटी, लीवर डिज आर्डर, हार्ट डिसआर्डर, स्किन आदि सारे रोगों को ठीक किया है, ठीक कर रहे हैं और कोरोना जैसे वायरस को भी ठीक करने चिकनगुनिया, फ्लू को भी ठीक करने का दावा करते हैं। माइक्रोस्कोपिक टेस्ट के बाद उन्होंने बताया कि सारे हरे पत्तेदार सब्जी, फल, जूस एवं प्राकृतिक भोजन में लाइक इंजाइम्स होते हैं जो स्टार की तरह तैरते रहते हैं।
हमारे शरीर में इनक्रिटिन हारमोन होता है यह ट्रैफिक पुलिस की तरह काम करता है और लाइक इंजाइम्स अनुशासित ड्राइवर की तरह। जब इनक्रिटिन हारमोन भोजन के लाइक इंजाइम्स को जब जहाँ जाने का आदेश देता है अथवा रोके रखता है उसके अनुसार काम करता है और हम स्वस्थ होते हैं। पर यही जूस पैक अथवा डिब्बा बंद खाना ड्राइवर लेस लाइक इंजाइम्स के बिना होता है और तो इसे ही खानेसे हम रोगी बनते हैं। एनिमल फुड और किसी भी फैक्ट्री का बना कोई भी फुड विटामिन्स, फुड सप्लिमेंट, न्यूट्रीशंस, दूध और दूध उत्पाद, पैक्ड आदि वीआईपी डाइट है जो हमारे शरीर के मकान का बना बनाया डिजाइन बर्बाद करते हैं। डा. विश्वरूप राय सहित उनके ग्रुप के चिकित्सक यह भी बताते हैं जब आप डीआईपी भोजन यानी फल और कच्ची सब्जी लेते हैं तो अंग्रजी दवायें बंद कर दें तभी लाभ होगा अन्यथा हानि होगी चाहे वह किसी भी रोग के फोर्थ स्टेज का ही मरीज क्यों न हो। उन्होने हार्ट के मरीज पर अपना प्रयोग बताया और १६६८ के नोबुल प्राइज विनिंग के रिपोर्ट के आध गार पर कहा हमारे शरीर में हार्ट अटैक प्रूफ ब्लड वेसेल्स होती हैं जो अर्टरी ब्लाकेज होने पर और नाइट्रिक आक्साइड मिलने पर ब्लड वेसेल्स स्वतः खुल जाती हैं। यह नाइट्रिक आक्साइड फल जूस सब्जी के पहले आहार से ही खुल जाती है। इस प्रयोग के दौरान ब्लड लीनर यानी खून पतला करनेवाली दवा देने और सर्जरी करने से रोगी मर जायेगा। क्योंकि तब खून की क्लौटिंग नहीं होगी और रोगी जीवन से हाथ धो देगा। उन्होंने हर रोग से मुक्ति और आजीवन स्वस्थ रहने के लिये बताया पहले चरण में सुबह ६ बजे से १२ बजे तक केवल और केवल चार तरह के पसंद के फल खायें पूरी डाइट फल लें। कम से कम जितना शरीर का वजन है उस पर एक शून्य और रखकर उतना ग्राम फल यानी ७० किलो शरीर का वजन तो ७०० ग्राम फल ।
अधिक से अधिक जितना खा सकें। डायबिटिक रोगी भी फल खायें पर उस अवधि में कोई डायबिटिक अंग्रेजी दवा न लें। स्टेप दो में दो प्लेट लें, प्लेट दो में शाकाहारी पसंद का कोई भी भोजन जो अधिक तेल मसाला नमक वाला न हो। प्लेट दो को खाने से पहले प्लेट एक खायें जिसमें चार तरह की कच्ची सब्जी हो जैसे गाजर, मूली, खीरा, टमाटर, नींबू, ककड़ी मटर, हरी पत्तेदार सब्जी, सलाद, चुकंदर शलजम आदि। प्लेट एक में कम से कम अपने शरीर के वजन मौत के किलो में पांच का गुणा करें और हाथी उतनी मात्रा को पूरा पूरा और पहले पिटारा खायें बाद में प्लेट दो का भोजन कुक्ड खायें। ऐसा करने से भूख बढ़ेगी, मेटाबोलिज्म ठीक होगा और शरीर स्वस्थ बनेगा। प्लेट दो पहले खाने अथवा दोनों प्लेट साथ साथ खाने से नाखून मेडिसनल फूड नहीं होगा। यह भोजन सुबह १२ बजे के बाद सूर्यास्त पूर्व होता ग्रहण करें और रात ८ बजे के बाद कोई भोजन ग्रहण न करें क्योंकि सूर्यास्त के बाद क्रमशः पाचन क्रिया शिथिल होती जाती है। स्टेप तीन में किसी भी तरह का पैक्ड फूड न खायें, रिफाइंड फार्म का बना कोई पदार्थ न खायें, डेयरी मौसमी या डेयरी का कोई पैक्ड भोजन न शरीर खायें, कोई एनिमल फुड मछली, मांस, नीरोगकारक अंडा आदि न खायें, कोई भी न्यूट्रीशनल फुड या सप्लिमेंट न खायें, कोई भी पैक्ड वाटर ठंडा, कोल्ड ड्रिंक, पेप्सी घोड़ा आदि न ग्रहण करें, चाय और काफी सदा के लिये त्याग दें। उन्होंने बताया विश्व का कोई जीव मानव को छोड़कर दूसरे जीव का दूध नहीं पीता। हर माँ में का दूध उसके बच्चों के लिए लाभदायक इंटेस्टाइनल है पर दूसरे के लिये हानिकारक। १५ ठीक दिन दूध पीना बंद कर अपने शरीर किडनी की जांच करायें और १५ दिन दूध डिजार्डरपीने के बाद जाँच करायें अंतर जाहिर पाँच हो जायेगा। उन्होंने बताया २०१५ के में नवंबर माह में थाइलैंड के सूरिन में विधेयात्मक कार्य करने हाथी फेस्टिवल होता है। हाथी के डाक्टर कोरोना पिटारा के अनुसार हाथी आदमी का कुक्ड फुड खाने पर बीमार होता है नारियल और वह हरे पत्ते, फल आदि खाने से उसे कभी कोई रोग नहीं होता। वैसे तो करने आदमी के बालों में सबसे ज्यादा प्रोटीन, ठीक नाखून में सबसे ज्यादा कैल्शियम, सूखी भोजन लकड़ी में सबसे ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वह होता है पर वे हमारे शरीर के की मेटाबोलिज्म के लिये अयोग्य हैं, वैसे हमारे ही सारे एनिमल्स/डेयरी फूड, इंडस्ट्रियल इनक्रिटिन पैक्ड फुड न्यूट्रीशंस, विटामिन्स, लिक्विड पुलिस आदि हमारे शरीर के लिये एवलेबुल समाज फार्म में नहीं हैं। अंकुरित पत्तेदार, नहीं मौसमी सब्जी, फल एवं इसका रस जैसी शरीर के लिये स्वास्थ्यवर्द्धक एवं लिये नीरोगकारक है। शेर भी बीमार पड़ता चाहिये है तो घास खाता है।
कुत्ते अपना हर हर घाव पौधों से भरता है। गाय, हाथी, लेती घोड़ा मांसाहार नहीं करते पर उनकी बाद हड्डियाँ सबसे मजबूत पत्तेदार भोजन समाजसे होता है। अगर उपरोक्त विधि से के भोजन करेंगे तो तीन दिनसे एक सप्ताह वीआईपी में हाई ब्लड प्रेशर हाइ कोलेस्ट्रोल, जन्म इंटेस्टाइनल डिजार्डर, थायरायड आदि कांश ठीक हो जायेंगे। एक माह में अर्थराइटिस, दुबारा किडनी डिस्ट्रक्शन, ओबेसिटी, लीवर कोरोनाडिजार्डर, हार्ट डिजार्डर, ठीक होंगे। में पाँच माह में यक्ष्मा ठीक होगा।६ माह में कैंसर एवं स्किन डिजीज ठीक होंगे। हर प्रकार का बुखार चिकनगुनिया कोरोना १६ मात्र प्लेट एक खाने से और प्रत्येक दिन तीन टाइम ५-५ नारियल पानी तीन दिन के सेवन से और पैक्ड कुक्ड, एनिमल फुड बंद करने तथा हर दवा सेवन बंद करने से ठीक हो जायेगा। जो आजीवन इस भोजन को जीवन का अंग बना लेगा वह पूरी आयु तक स्वस्थ रहेगा। सुबह की चाय तो जहर के समान है। वह हमारे शरीर के ट्रैफिक इंस्पेक्टर इनक्रिटिन को मार डालता है और जब पुलिस कमजोर होगी तो शरीर, देश समाज की भी कोई व्यवस्था स्वस्थ नहीं होगी। हमारी सरकार को शराब जैसी अपराध जनक पदार्थ पर सदा के लिये बिक्री, पाबंदी, बंदी लगा देनी चाहिये क्योंकि हमारी जीभ २१ दिन में हर स्वाद के अनुरूप अपनेको ढाल लेती है। डेढ़ माह के लाकडाउन के बाद इसे बेचने की छूट देना व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और अर्थव्यवस्था सभी के लिये हानिकारक है। इसी मनमानी वीआईपी व्यवस्था ने सारे प्रदूषण को जन्म दिया है और लाकडाउन में अधि कांश प्रदूषण कम हो गये। अच्छा है दुबारा प्रदूषण न हो और दुबारा कोरोना-१६ का आक्रमण बड़े स्वरूप में न हो इसके लिये प्राकृतिक जीवन और प्राकृतिक भोग को अपनायें।