वैश्विक मंदी में जीवन का बैलेंसशिट समृद्ध करने के उपाय

वैश्विक मंदी __पूना से इलेक्ट्रिक इंजीनियरी में स्वर्णपदक प्राप्त शिवानीजी पूना में ही आयोजित ब्रह्मकुमारी के आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में 'बैलेंसशिट आफ लाइफ' विषय पर बोलते हुए सभी अभ्यागतों से कहा, आज सभी अपनी जीवन यात्रा का मौन होकर अवलोकन करें। इस जीवन यात्रा में कई सुंदर और दुखद पड़ाये। ये पड़ाव क्यों आये, कैसे आये ? इस शरीर को, जीवनको कौन चला रहा है। किसकी मर्जी से मेरे जीवन में ये सब कुछ हो रहा है ? पूछे, मेरा भाग्य कौन लिख रहा है ? भाग्य बदलने के लिये किसके पास जाना होगा ? बीमारी व्यापार में घाटा, आपसी सम्बन्धों में कटुता, मेहनत के बाद भी असफलता आदि अनइच्छित कार्य क्यों को रहे हैं ? कितने लोग ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे कि सब कुछ परमात्मा की मर्जी से, उसकी इच्छा से हो रहा है, हाथ उठायें। अगर सब कुछ भगवान क मर्जी से चल रहा होता, परमात्मा सबका भाग्य लिख रहा होता तो कोई क्यों जन्म लेते ही माता-पिता से अनाथ, शादी ही विधवा, विधुर, भरे पूरे परिवार होनेके बाद भी कोई सहायक वृद्ध का नहीं होता? अगर कोई माता-पिता अपनी संतान का भाग्य लिखे का अधिकार रखता तो क्या वह किसी का भाग्य बुरा लिखता, नहीं लिखता। परमात्मा भी अपनी किसी संतान का भाग्य बुरा नहीं लिखता है, पर संसार में किस का भी भाग्य न तो एक समान है, नही परफेक्ट है। नेपाल में भूकम्प आता है, उत्तराखंड में बाढ़ आती है, सब कुछ बर्बाद होता है। हम कहते हैं हे परमात्म पूरी उम्र लगा दी एक घर बनाने में दो मिनट भी नहीं लगा तुम्हें हजारों लाखों को बेघर करने में। एक भक्त परिवार के साथ अपनी गाड़ी से हाई नेशनल वे से ईश्वर दर्शन को जाता है। एक्सिडेंट होता है माँ-बाप, पत्नी-पुत्र, पाँच साल का बेटा भी खत्म हो जाता हैं। वह जिंदा है। घर लौटता है। वह सभी ईश्वर गुरु की फोटो जमीन पर पटकर कर तोड़ देता है, पैरों से जूतों से रौंदता है, पूछता है मैंने कोई गलत काम नहीं कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? ब्लेड से अपनभी कलाई की नस काटता है पर वह लोगों से बचा लिया जाता है।


जीवन यात्रा अवलोककों से दूसरा प्रश्न पूछा, कितने लोग ऐसे हैं जो मानते हैं जैसा कर्म, वैसा फल मिलता है, हाथ उठायें। हाथ उठाने वालों इसका अर्थ यह हुआ मेरी जीवनयात्रा में जो कुछ भी अच्छ बुरी स्थितियों, परिस्थितियाँ मिलीं उसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। मेरी मर्जी, मेरा कंट्रोल। याद रखें सब कुछ परमात्मा की मर्जी से चलता है और जैस कर्म वैसा फल दोनों एक साथ नहीं चलता, दोनों एक साथ सही नहीं हो सकते। इसलिये हमें दोनों में से एक का ही मार्ग मजबूती से पकड़ना होगा एक पर ही संकल्प कम साथ जीवन यात्रा पूरी करनी होगी, चाहे बच्चा बने रहे या होशियार। बच्चे की यात्रा माँ बाप परमात्म पर निर्भरता से पूरी होगी, कर्म योगी की यात्रा निजकर्तव्ये पर निर्भर होगी। भले बुरे के जिम्मे हम स्वयं हैं। तीसरी बात, कितने लोग है। जो हस्तरेखा, जन्म कुंडली से भाग्य में क्या है ज्योतिषी से जाँच कराते हैं। ज्योतिष हस्तरेखा आदि प्रारब्ध जो लेकर धरती पर आते हैं उसकी गणना कर फल बताते हैं, पर यह फल तब सत्य होता है जब हम वर्तमान में करते हैं। ज्योतिष कहता है स्वास्थ्य कमजोर होगा, मधुमेह होगा, तो हमें अपनी जीवन प्रक्रिया बदलनी होगी,तब स्वस्थ होंगे, वरना भाग्य में लिखा है पर छोड़ देंगे तो जो बात जेहनमें चली गयी, उपाय नहीं किया तो वैसा ही होगा। शादी, गृह निर्माण, जीवन के सारे संस्कार ज्योतिष के अनुसार शुभ घड़ी शुभ मुहूर्त, शुभ लगन, वार, तिथि, नक्षत्र, निर्दिष्टउपाय अनुसार करते हैं पर क्या सब अच्छे होते हैं ? अपनी मर्जी के होते हैं ? नहीं होते। क्यों नहीं होते ? तो अब हमें अपने कर्मो का हिसाब किताब यानी कार्मिक एकाउंट चेक करना होगा। कार्मिक अकाउंट चेक करना होगा।


                                     


कार्मिक अकाउंट चेक करना हम शुरू करते हैं। जो हम सोचते हैं, बोलते हैं, करते हैं, है हमारा कर्म। जो हमारे साथ दूसरे लोग सोचते हैं, बोलते हैं, और कर रहे हैं वह है हमारा भाग्य। भाग्य बाहर से अंदर आती ऊर्जा है तो कर्म अंर से,आत्मा से बाहर जाती ऊर्जा। इसे ऐसे समझें। हमारे हाथ में गेंद हैं। यह हमारे अंदर की ऊर्जा पर निर्भर है कि हमें उसे किस दिशा, किस कोण, किस लक्ष्य पर कितनी ताकत से फेंकनी है। यह हमारा कर्म हुआ।अगर गेंद दीवार पर फेकी गयी तो दीवार उस गेंद को वापस करेगी, पर कब करेगी, किस कोण और दिशा से कितनी समय के बाद करेगी यह है भाग्य। जो गेंद फेंकेंगे वही आयेगा, काली गेंद फेंकेगे काली गेंद लौटेगी सफेद गेंद फेकेंगे सफेद वापस होगी। गेंद अगर कर्म है काला रंग गलत कर्म है और सफेद रंग सही कर्म है। तो हमें सही कर्म फल कब और कैसे मिलेगा ओर गलत कर्म फल से कैसे मुक्त होंगे? अगर अगर हम स्वयं सही सोंचे, सही बोले सही करें ओर उनके साथ भी ऐसा करें जो हमारे साथ बुरा सोच, बुरा बोल बुरा कर रहे हैं तो हमारा कार्मिक एकाउंट सतयुग का होगा। हम बुरा सोचने बुरा करने, बुरा बोलने वाला को वैसी ही बुरा सोच, बुरा बोल, बुरा कर्म से गेंद लगातार फेंक रहे हैं इसलिये यह कलयुग कलियुग, कलयुग है। काली गेंद फेंकने वाले को हम लागातर बदले में सफेद गेंद फेकेंगे तो फेंकने वाले के पास एक समय काली गेंद समाप्त हो जायेगी और फि वह सही सफेद गेंद फेंकने को बाध्य होगा जो हमने उसे फेंका है। सही कर्म तब तक करते रहें जब तब काले कर्म का अंत न हो जाय। जो हमारे साथ गलत सोच रहे, बोल रहे, कर रहे हैं उनके साथ तब तक सही सोच, सही बोल, सही कर्म करें जब तक वह सही सोच, बोल कर्म का नहीं हो जाता। इससे हमारा भाग्य भी हमारे अनुकूल होगा और हमारा वर्तमान, भूत, भविष्य सब अनुकूल होंगे। हमसे दूसरे की सोच, कर्म, बोल में बदलाव होगा, तब सत्युग होगा। कलियुग का अंत ही सत्ययुग के आगमन का कारण होगा। कार्मिक अकाउंट आत्मा का आत्मा के साथ होता है, शरीर का शरीर के साथ नहीं। इसे ऐसे समझें। शुरू में दो समान विार वालों से मिलकर व्यापार किया। व्यापार बढ़ा। एक नेदूसरे को धोखा दिया। दूसरा गर्दिश में पड़ गया और गर्दिश में ही देह त्याग कर दिया। उसने नयाजन्म लिया पर नाम, पता, एड्रेस सब बदल गये। जैसे ३१ मार्च का क्लोजिंग ही एक अप्रैल का ओपनिंग बैलेंसशीट होगी वैसे ही नये ड्रेस, नाम, पता चेंज के साथ आये शरीर क आत्मा अपना लेन-देन चुकता करेगा, जिसे हमम नहीं जानते, नहीं पहचानते। देव दर्शन को जाते भाई का परिवार नेशनल हाईवे पर एक्सिडेंट में समाप्त हो गया, वर्तमान पर उसे क्रोध है, गुस्सा है पर यह फल तो प्रारब्ध का है, पूर्व जीवन के कर्म का नाम, पता, ड्रेस चेंज के साथ आत्मीय बनकर हिसाब चुकता किया है। आज हम जैसा पसंद करते हैं वैसा ही दूसरे के साथ करते रहे, करते रहें तो हमारे बैंक का ह्वाइट मनी कार्मिक अकांउट समृद्ध, आनंद, पूर्णता को देनेवाला होगा। भाग्य विधाता आत्मा ज्ञान देता है, शक्ति देता है, बल और चेतना भी उससे मिलता है परकर्म हमें करना होता है। जो उसकी साक्ष में सही और सही ही कर्म करेगा, दूसरे बुरे कर्मकारों को क्षमा करेगा उसका बुरा खाता बेस्ट खाता बनता जायेगा। आज और अभी से नया खाता अच्छे कर्मों के साथ खोलें और बढ़ाते जायें भाग्य यानी भविष्य प्रारब्ध भी सही होगा, वर्तमान भी समृद्ध, शांति पूर्ण बनेगा। ब्लैक बाल स्टाक, बुरे कर्म का खाता बंद करें। साध पारण व्यवहार शादी, जन्मदिन के गिफ्ट में भी हम सोचते हैं हमें पहले उसने कितना दिया था हम भी उसे उतना ही या कुछ अधिक लौटाते हैं। जितना अधिक जो दिय उसे उतना ही अधिक मिलेगा। जो फल चाहिये वैसा ही कर्म करें तो कार्मिक अकांउट में सुधार होगा। क्रोध, प्यार, क्षमता में हमें प्यार चाहिये तो प्यार देना होगा, देते रहने होंगे क्रोध करनेवाले को भी।


अब हमें विचार करना होगा ऐसी पवित्र ऊर्जा , विचार भाव लगातारकैसे बने रहेंगे। इसके लिये हमें सात्विक धन कमाने से मतलब है, पहले दूसरे का लाभ बाद में अपना लाभ। जैसे कोई क्रेता सामान मांगता है। विक्रेता कहता है बाबू जी आज यह अच्छा नहीं है, कही और जगह ले लो। क्रेता उससे प्रभावित होता है, विक्रेता को लाभ की जगह हानि होती है पर वही क्रेता हर रोज उसका पक्का ग्राहक बन जाता है। अच्छे सामान द विश्वास ही उसका शिव तत्व है, कल्याणकारक है। जो अपना लाभ पहले से ही लेते और ग्राहक को हानि देते हैं, सामानों में मिलावट करते हैं, वे बददुआ ग्राहक का लेते हैं। वह धन परिवार में अशांति, कलह, धूर्तता, आदि बुराइयों को पैदा करेगी इसेस धन, जन, परिवर सबकी हानि, परेशानी बढ़ेगी। सात्विक आय ही लक्ष्मी है, बददुआ अर्जित धन ही दरिद्रता का, रोगों को दरिद्रता का, रोगों को संबंधों में टूटन आदि का कारण है। सात्विक अन्न उसे कहते हैं जिसमें दूसरे की आह, दर्द, क्रोध , भय, नफरत आदि न हो। जैसा खायें अन्न वैसा होवे मन। जैसा पीवें पानी वैसी होवे बानी। एक भोजन पवित्र भावों के साथ परमात्मा का प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। एक भोजन माँ अपने हाथों से बनाकर बेटे को, परिवार को खिलाती है और एक भोजन रेस्टोरेंट ढाबे से लेकर खाते हैं। तीनों का प्रभाव तीन तरह के विचार पैदा करेंगे। परिवार में किसी का देहांत हो जाने पर उस दिनघर में भोजन नहीं बनता क्योंकि दुखी मनसे बना भोजन मनमें दुख पैदा करेगा। पर जिस पशु की हिंसा कर उसका मांस घर में पकाकर खाते हैं तो उसे स्वास्थ्यवर्द्धक मानते हैं। पशु का दर्द, डर, क्रोध, नफरत, भय मांस में है, वह हमारे शरीर में भी वैसा ही भाव विचार बोल और कर्म करायेगा। प्रायः लोग टीवी देखते हुए पेपर पढ़ते हुए भोजन करते हैं इससे टीवी और पेपर के विचार हमारे भोजन को प्रदूषित करते हैं। श्मशान घाट, स्लाटर हाउस के निकट घर नहीं बनाते, क्योंकि ऋणात्मक ऊर्जा तन मन को अशांत करती है। ऊँचाई पर बने टंकियों में पानी को मशीन से चढ़ाया और घरों में भी मशीन से छतों पर पानी पहुँचाया जाता है। आकाशीय वातावरण, गहरे कुएँ के वातावरण की तुलना में अशांत होता है अतः कुएँ का पानी धनात्मक उर्जा देगा और जैसा पानी वैसी बानी होगी। ग्लास के पानी को पवित्र. भाव विचार से भगवान के अर्पित कर मंत्रों से अभिसिंचित कर ग्रहण करते हैं तो उसका प्रभाव दिव्य होता है। क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष्ज्ञ, अशांत मनसे भोजन ग्रहण करने और कराने से मनऔर विचार वैसे ही अशांति कारक होते हैं। इसीलिये लोग बहुत सोच समझकर अन्न और जल दूसरे के घर का ग्रहण करते थे, जल साथ में लेकर अपना चलते थे। दवा, पानी, भोजन, दूध आदि जो भी ग्रहण करें भोजन सामग्री तैयार करें शुभ संकल्प और पवित्र भाव, पवित्र धन का होना चाहिये। अगर मन में बुरे विचार पैदा हो रहे हों तो अन्नजल का शोध निकरें। शुद्ध धन, अन्न, जल से ही मन सात्विक बनता हैं जैस हम देखते, सुनते, पढ़ते चखते हैं वैसी ही हमारी सोचबनती है।


इसलिये हर कार्यों का आरंभ दो मिनट मौन होकर ईश्वर को याद करके करें। अपने दैनंदिन कार्य का आरम्भ और विश्राम, शयन ईश्वर का याद करके करें। अपने दैनंदिन कार्य का आरंभ और विश्राम शयन ईश्वर को ध्यान ज्ञान आत्म को साक्षी रखते हुए करें। टीवी चैनल, अखबार, वाट्सएप जैसे बूरी सूचनाओं को ग्रहण करते हुए नकरें। जब हम दूसरे के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा परमात्म के साथ करते हैं, जैसा हम स्वयं के लिये चाहते हैं वैसा ही व्यवहार दूसरों से करते है तो हमारा कार्मिक अकाउंट समृद्ध होगा। धन, अन्न, मन, संबंध पवित्र होंगे तो हमारा तन भी दिव्य होगा, संस्कार भी दिव्य होंगे और तब न हम खाली हाथ जायेंगे ओर न ही खाली हाथ आवेंगे। हर कर्म, सोच, बोल, खानपान, व्यवहार और मैं आत्मबल जब शुभ संकल्पों के साथ होगा तो हमारी सृष्टि हमारे अनुकूल होगी, क्योंकि जो दिखा सुना वैसा हमने न सोचा न किया। जैसा हमने अपने लिये चाहा वैसा ही दूसरों के लिये किया। अगर सोच सही हो तो रोग सही होंगे, रिश्ता सही होंगे। प्रोब्लम सोचेंगे तो प्राब्लम बढ़ेगा, हल सोंचेगे तो हल मिलेगा। अतः मौन होकर आत्मा क ताकत से मनको रीचार्ज कर बाहर से हर काम को करें,जैसे मोबाइल को चार्ज कर काम लेते हैं। आत्मा को सर्विस सेन्टर बनायें देने का नाम देव है लेने कानाम दानव। आत्मा ऊर्जा देती है। तब इंद्रियाँ काम करती हैं, पर इंद्रियाँ ऊर्जास्वित आत्मा अपनेमूल स्रोत को भूलकर बाहरी स्रोतों के प्रभाव में वैसी कार्मिम बन जाती है। यही से बुराइयाँ, अपना-पराया, सग्रह सुख, अभाव दुख आदि अनचाहे सौगात मिलते हैं। सात्विकता धन की, अन्न की, मन की, व्यवहार की तन की शुभ संकल्पों के साथ ईश्वर को साक्षी स्वरूप में आत्मा के योग से सारे कर्म करते जायें। औरों को कराते जायें कलियुग सत्ययुग का प्रवेशद्वार बन जायेगा। स्वयं ही शिव संकल्पमस्तु सभी होंगे शिव संकल्पमस्तु।