कोरोना है, और रहेगा, कोरोना बजट जारी होगा, गिनती बंद होगी

कोरोना है, लखनऊ (विविसं.)। विश्व की जनता की आमदनी का आधा से अधिक भाग विभिन्न प्रकार के टैक्सों में चला जाता है। शेष आय का आधा भाग पढ़ाई और दवाई में चला जाता है। आप पूछेगे फिर व्यक्ति और व्यक्ति के परिवार का अन्य खर्च कैसे चलता है ? तो इसका उत्तर है जो सरकारी अष्टि कारी/कर्मचारी और इनके समकक्ष वेतन पानेवाले अर्द्धसरकारी/कंपनियों के कर्मचारी होते हैं उनमें ६० से ५० प्रतिशत लोगों का खर्च रिश्वत, भ्रष्टाचार और सुविधाजनक विभिन्न प्रकार के लोन पर चलता है। शेष जो २०-३० प्रतिशत ईमानदार होते हैं उनका जीवन अपेक्षाकृत रिश्वतखोरों से स्वस्थ पर खर्च कम होने और सामाजिक प्रतिष्ठा होने से परस्पर के सहयोग से चलता है। जिनकी आमदनी के स्थायी स्रोत नहीं हैं और कठिन परिश्रम करते हैं तो वे और उनका परिवार स्वस्थ होता है। उनकी संतान कर्मठ, मेधावी, चरित्रवान होने से वे शिक्षा लोन, सरकारी छात्रवृत्ति आदि के सहारे शिक्षा ग्रहण करते और आगे बढ़ते हैं। आकस्मिक आपदा का सामना वे खेत, जमीन, गहने बेचकर करते हैं। कर्ज में जीते और कर्ज में मरते हैं, पर अपनी संतान को सेना, पुलिस में, शिक्षक, कार्यालयों के कर्मचारी आदि सेवाओं में भेजकर संतोष करते हैं। सरकार और देश के परिवारों कीव्यवस्था इन्हीं के कंधों पर चलती है।


शिक्षा और चिकित्सा क्यों इतनी महंगी है ? इसलिये कि कोई भी बिना प्रमाणपत्र के कोई सेवा नहीं कर सकता, भले ही वह प्रमाणपत्र धारक से योग्य और दक्ष हो। प्रमाणपत्र देनेवाली संस्थाएँ हर प्रकार की सेवाओं के शिक्षण-प्रशिक्षण महंगी फीस भरनेवालों को ही देती है, इसलिये हर सरकारी सेवा विशिष्ट आर्थिक वर्ग के हाथ में होती है और यह वर्ग अपनी सेवा की उतनी कीमत लेता है जितनी अधिक व्यक्ति देने में सक्षम होता है। योग्यता का मानक अगर प्रमाण पत्र को हटा दिया जाय और प्रत्यक्ष सार्वजनिक रूप से एवं समान रूप से कार्य दक्षता को सेवा का आधार बनाया जाय तो व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का सर्वमुखी विकास हो। पैसा, जाति, भाषा, क्षेत्र, राज्य विशेष को प्रमुखता देने के कारण भारत की सेवाएँ घटिया और उसका शुल्क श्रेष्ठतम है। हर विभागों में दक्ष और पर्याप्त कर्मचारियों के अभाव का यही प्रमुख कारण है।


वर्तमान में भारत सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) की नीति पर और अंग्रेजी चिकित्सकों (एलोपैथ) के सहारे देश की जनता को स्वस्थ रखने को प्रतिबद्ध दिखती है, जबकि ये दोनों ही स्वास्थ माध्यम घटिया स्तर के और महंगे हैं, दवाओं का व्यापार बढ़ाने के लिये देश की गरीब जनता पर बलात प्रयोग और परीक्षण किये जा रहे हैं और देशी, होमियोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी आदि अनुभवी चिकित्सकों एवं चिकित्सा पद्धति को दरकिनार किया जा रहा है। रोगों के नाम, दवाओं के नाम, पथ्य-अपथ्य के नाम अंग्रेजी में ऐसे बताये और भय पैदा किये जा रहे हैं जिससे चिकित्सा सेवा भी राजनीति और भय से संक्रमित होता जा रहा है। काश ! हम अपनी चिकित्सा करने को स्वतंत्र होते तो लाकडाउन, कोरोन्टाइन, सोशल डिस्टेनिंग जैसे व्यर्थ के अर्थहीन एकता के दिखावटी जाल में फँसकर अपनी अर्थव्यवस्था नहीं खोते। कोरोना को मरने के लिये अधिक तापमान चाहिये और अधिकृत चिकित्सक दवा कर रहे हैं आईसीयू में (ठंड कक्ष) में। चिकित्सा खुले आसमान के नीचे सूर्य के प्रकाश में, हवादार टेंट में होना चाहिये। किसी भी वाइरस के प्रभाव में आने पर तापमान शरीर का बढ़ता है और तापमान बढ़ने से वाइरस टूट कर सर्दी, जुकाम से बाहर आता है। चिकित्सक सामान्य बुखार को कोरोना का लक्षण मानकर तापमान कम करने की दवा पारासिटामोल, क्लोरोक्वीन आदि दे रहे हैं। इससे कोरोना वाइरस बना रहता है, जिसे पाजीटिव कहा जा रहा है। कोरोना वाइरस मांसाहार, अप्राकृतिक भोजन और अप्राकृतिक आहार विहार से बढ़ता है। चिकित्सकों को जनता के प्रति यह सलाह देनी चाहिये और सरकार को भी मांस निर्यात पर, स्लाटर हाउसों पर ON स्थायी प्रतिबंध लगाना चाहिये। हमारे शरीर में ६० प्रतिशत वाइरस हैं पर हम स्वस्थ हैं तो इसलिये कि हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। रोग प्रतिरोध क क्षमता का हास मांसाहार, शराब, गुटका आदि मद्य पदार्थों के सेवन से होता है और हममें कई तरह के वाइरस कई तरह के रोग पैदा करते हैं।


                                   


अतः हमें स्वयं और हमारी सरकार को भी इम्यूनिटीवर्द्धक खाद्य पदार्थों को उपलब्ध करानी चाहिये और मद्य, मांस, नशीले पदार्थों के उत्पादन, बिक्री पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिये। एनिमल प्रोटीन खानेवाले को ही कोरोना वाइरस जानलेवा है। डा. विश्व स्वरूप राय का स्पष्ट कहना है कि हमें अधिक से अधिक विटामिन सी ग्रहण करना चाहिये यह खट्टे फलों में संतरा, मौसमी, नीबू, टमाटर, आम आदि से मिलता है। नारियल का पानी पीना चाहिये जिससे डी हाइड्रेशन न हो और मिनरल का संतुलन बना रहे। हरी सब्जी का जूस सेवन किया जाना चाहिये। दूध में हल्दी गर्म कर सेवन करनेसे इम्युनिटी बढ़ेगी। बच्चों और बूढ़ों को तो भारत के बदलते मौसम में सर्दी, जुकाम कामन कोल्ड साल में चार पाँच बार होना ही चाहिये और आदमी को कम से कम वर्ष में एक बार होना ही चाहिये, स्वस्थ रहने के लिये यह जरूरी है। किसी वायरस का कोई इलाज नहीं है और न ही होता है। तीनदिन में स्वतः ठीक हो जायेगा। अपने शरीर के वजन को १० से भाग दें जितना किलोग्राम आये उतना नारियल का पानी और फाइब्रस जूस पहले दिन पियें, दूसरे दिन बाडी वेट को २० से भाग दें और उतना किलोग्राम नारियल पानी, जूस, खीरा, टमाटर, नीबू, सेंधा नमक जूस पियें। तीसरे दिन भी शरीर के वजन को ३० से भाग दें जितना आये उतना किलोग्राम या लीटर जूस, नारियल पानी और शाम को खिचड़ी खायें। बुखार बढ़ेगा नहीं और वायरस बाहर होगा। सर्दी, जुकाम बाहर होना चाहिये उसे दवा से सुखाना या रोकना नहीं चाहिये अन्यथा वायरस अपने को बदलकर दूसरा रोग पैदा करेगा। जब लोगों से पूछा कि फिर इतनी बड़ी संख्या में रोज लोग क्यों मर रहे हैं तो उन्होंने बताया जितना जिन देशों में लोग मर रहे हैं वह संख्या पिछले कई वर्षों से मर रहे वार्षिक दर से कम है। केवल टीबी से विश्व में १५ लाख और भारत में पांच लाख लोग हर वर्ष मरते हैं। कैंसर, हृदयाघात, सूगर आदि से मरने वालों की संख्या भी इससे बड़ी है। पर अब हम गिनती कर रहे हैं, पहले गिनती नहीं किये।


फर्मा कंपनियों, सेल्स एजेंट, डाक्टरों, डब्लूएचओ, सरकार की एक चेन है जो हमें भयभीत कर हमारी सरकार और विश्व के देशों की सरकार से बड़ी बजट कोरोना वैक्सीन बतौर लिया जायेगा। एचआईवी की तरह ही यह है, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सारे नियम एचआईवी की तरह रखे हैं अंतर यह है कि एचआईवी की जगह कोरोना लिख गया है। आज तक एक भी आदमी एचआईवी से मरा नहीं, एक भी शोधपत्र सामने नहीं आया पर भारत से २००० करोड़ रु. इस मद में व्यय हुआ, लाभ फर्मा कंपनी को, एजेंटों, डाक्टरों, सरकार और समाचार पत्रों को हुआ। गरीब देशों में यह कोरोना नहीं है, पैसा वाले देशों में ही तेजी से बढ़ा है, कारण इकोनामी वार हैं, आर्थिक युद्ध है। जो दवाएँ प्रयोग की जा रही हैं उस पर लिखा है 'एक्सपेरिमेंटल'। इन्वेंटर और सीबीसी कोई नहीं कह रहा है कि कोरोना की यही दवा हैं। जाहिर है जब रोग और दवा अनुसंधान स्तर पर है, तो लाक डाउन क्यों ? घर में बंद रहकर भी हम कोरोना से बच नहीं सकते, क्योंकि यह शरीर में होता ही है। घेरो और प्रयोग करो, क्यों ? एक्सपेरिमेंटल प्रूफ के लिये। एक्सोजोम और कोरोना दोनों में सादृश्य हैं और दोनों शरीर में बनते रहते हैं। दोनों में ही ५०० एनएम, १०० एनएम, एसीई-२ आरएनए, खास फ्लूइड होते हैं। वन्ली फार रिसर्च प्रोसेज लिखी दवाओं का प्रयोग मानव पर करना कानूनी जुर्म है, पर कानून बनाकर किया जा रहा है। पूरी आबादी की जाँच की जाय तो आबादी का दो प्रतिशत कोरोना पाजीटिव मिलेगा, जो बिना दवा के ठीक हो जायेगा, पर कोरोना का भय ६८ प्रतिशत निगेटिव कोरोना को भी खानेको बाध्य करेगा।


जो कोरोना से नहीं मरे, वे कोरोना की परीक्षण की जानेवाली दवाओं से मरेंगे। पर सही बात कहने पर भी प्रतिबंध है। सरकार की आर्थिक व्यवस्था जब धराशायी हो जायेगी तभी कोरोना भाग जायेगा, यह चीन और अमेरिका, डब्लूएचओ की नीतिगत साजिश है। आयुर्वेद में इम्युनिटी बढ़ाने के अनेक घरेलू उपाय है, पर इसे एलोपैथ टीम ने अलग रखा है। जापान का शासक भारत के होम्योपैथी से ठीक हो गया पर होम्योपैथी चिकित्सको को इससे दूर रखा गया। कोरोना कभी निल नहीं होगा। पूरे देश में धारा १४४, लाकडाउन २१ दिन का बीत रहा है, क्या संख्या कम हुई। जितनी जाचें बढ़ेगी, पाजिटिव की संख्या बढ़ेगी, वैक्सीन आयेगा और देश की पूंजी जायेगी, कोरोना आज है, कल रहा आगे भी रहेगा, पर तब मरनेवालों की गिनती नहीं होगी।