कवितालोक-काव्यशाला में डॉ मंगल का एकल काव्यपाठ

लखनऊ 27 जनवरी।


अखिल भारतीय कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में नीरव निकुंज पर 57 वीं काव्यशाला में एकल काव्य पाठ का  आयोजन किया गया। एकल कवि एवं मुख्य अतिथि डॉ. शिव मंगल सिंह मंगल और संयोजक एवं संचालक आचार्य ओम नीरव की उपस्थिति में सम्पन्न इस आयोजन की अध्यक्षता सिंधिया महाविद्यालय भिंड मध्य प्रदेश के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम सुंदर सौनकिया ने की। इस अवसर पर डॉ शिव मंगल सिंह मंगल और डॉ श्याम सुंदर सौनकिया को उनकी उत्कृष्ट हिन्दी-सेवाओं के लिए उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर 'कवितालोक भारती' सम्मान से विभूषित किया गया। काव्यपाठ के क्रम में सभी उपस्थित कवियों के योगदान के साथ डॉ मंगल को चार चक्रों में सुना गया और उनकी रचनाओं पर अन्य विद्वानों द्वारा चर्चा भी की गयी। बहुमुखी काव्य प्रतिभा के धनी मंगल जी ने वाणी वंदना से काव्यधारा का प्रारम्भ करते हुए अपना वह लोकप्रिय गीत सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया जिसके अंतरे हिन्दी, अङ्ग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी, बुन्देली, संस्कृत आदि अनेक भाषाओं में अलग-अलग निबद्ध हैं- कश्मीर हो या कन्या कुमारी पंजाब या बंगाल, कि रखना भैया इसे सँभाल, ये प्यारा हिंदुस्तान विशाल। हाइकू विधा पर आधारित बुन्देली में रचा उनका यह गीत विशेष आकर्षण का केंद्र रहा- बिरियाँ डार, पक रये बेरऊ, आये न तऊ। काव्य में अपने विविध प्रयोगों का प्रस्तुतीकरण करते हुए उन्होंने चौकड़िया सुना कर सबको मुग्ध कर लिया- अब तौ याद तुम्हाई आ रयि, आके हमे सता रयि, पावन वसंती धूप गुनगुनी नैकऊ मन नयिं भा रयि। इसी क्रम में मंगल जी ने तांका प्रस्तुत किया और साथ में यह भी बताया कि यह वैदिक गायत्री छंद का ही एक रूप है - बासन्ती रंग, पुरवाई  डोलती, छाई उमंग, कोयलिया बोलती, अमृत सा घोलती। संयोग और विप्रलंभ शृंगार के साथ अनेक अन्य रसों में उनके माहिया सुन कर श्रोता भाव विभोर हो गये- माहिया घर ना आये, इतने बरसे नैना, बादल भी शरमाये। उन्होंने यह भी बताया कि उनके अधिकांश माहिया 12-12-12 मात्राओं में निबद्ध है। बात वर्णिक छंदों की चली तो उन्होंने वाणी वंदना के घनाक्षरी छंद सुना कर सभी को तालियाँ बजाने पर विवश कर दिया- वीणापाणि सरस्वती वीणा स्वर झनकार, दे दो वर रसना से रस बरसाऊँ मैं। श्वेत वस्त्र धारिणी माँ श्वेत कमलासन पे, लख रूप आत्मा को धवल बनाऊँ मैं।  इसी क्रम में श्रोताओं के आग्रह पर मंगल जी ने माधवमालती छंद में निबद्ध यह गीत सुना कर श्रोताओं को रसविभोर कर दिया-  आ गयी याद फिर से प्रीत वह अपनी पुरानी, बैठ कर अमराइयों में जो कही हमने कहानी। मंगल जी के काव्यपाठ पर प्रतिक्रिया देते हुए श्रोता उनकी विलक्षण काव्य प्रतिभा से सुखद आश्चर्य अनुभव करते हुए दिखाई दिये।
      एकल काव्य पाठ के एकांतर क्रम में काव्य पाठ करते हुए युवा कवि संदीप अनुरागी के मुख से वाचिक स्रग्विणी छंद पर आधारित मुक्तक में वृद्धावस्था की बात सभी को बहुत भली लगी- जिंदगी जीने के आखिरी क्रम में है, प्यार मिलता नहीं बस इसी गम में है, बेटा इतना पढ़ा कि है परदेश में, बस इसी हेतु हम वृद्ध आश्रम में हैं। भारती पायल ने दिग्पाल छंद पर आधारित अपनी गीतिका में देश की दिशा और दशा का सकारात्मक स्वरूप प्रस्तुत किया- अब देश जग गया है जनता सँभल रही, जयचंद की नहीं अब, कुछ दाल गल रही। महेश प्रकाश अष्ठाना प्रकाश ने सांप्रदायिक सौहार्द का स्वर मुखरित किया तो वरिष्ठ कवयित्री अंजू शर्मा ने नारी-स्वाभिमान की बात कुछ इस प्रकार उठाई- तुम  मिथिला की सीता हो,गांधारी गौरी गीता हो। राधा की प्रेम पुनीता हो, पांचाली की अस्मिता हो। क्यों भूल गईं निज गौरव को, तुम तो गंगा का तर्पण हो।
प्रतिभा गुप्ता ने माधवमालती छंद में निबद्ध गीतिका सुनाते हुए कहा- जो कभी छप कर बिके थे क्या कहें हालात उनके, आजकल छपने से पहले ही बिका अखबार देखा। शरद पाण्डेय शशांक ने घनाक्षरी छंदों की छटा बिखेरते हुए सुनाया- सब है तुम्हारा यहाँ कुछ भी हमारा नहीं, देखता हूँ कैसे मुझको न अपनाओगे। आजकल में या निज बल से कभी लो छीन,
छल भी किया तो जो जिया है वहीं पाओगे। मंजुल मिश्र मंजर की वाचिक स्रग्विणी छंद पर आधारित इन पंक्तियों पर श्रोता झूम उठे- बेरुखी से ये बेजान हो जाये ना, जिस्म में जान रखना है आ जाइए। राजा भैया राजाभ ने रोली छंद पर आधारित गीतिका सुनाते हुए कहा- हो सम्मानित आप हमारे आँगन में, फिर भी अरि हित आप हमारे आँगन में। ओम नीरव ने देश मानव छंद में निबद्ध गीत प्रस्तुत करते हुए कहा- फूलों के पीछे छिप कर, कांटे करते गद्दारी, आम-बबूल सभी अपने, माली की है लाचारी। बाज छपट्टे मार रहे, सहमें हैं पंछी सारे। क्यों गुलाब की डाली पर, उग आये हैं अंगारे। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए डॉ श्याम सुंदर सौनकिया ने मदिरा छंद में यमक अलंकार की उद्भावना करते हुए सुनाया- बातन बातन बात चली फिर बातहि बात बताने लगी, बात की बात में बात बढ़ी कुछ ऐसी बढ़ी कि सताने लगी और इसके साथ सौनकिया जी ने एकल काव्य पाठ के इस स्वरूप की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कवितालोक के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
- ओम नीरव 8299034545